रविवार, 29 जनवरी 2012

एकांकी नाटक

चौदह अगस्त की शाम से पंद्रह अगस्त की सुबह तक
चौथी  किस्त ..........

नेता(3) - पेशाब करने का इशारा करते हुये गांधीजी के मूर्ति के पास जाता है।
 
नेता(1) - अबे इधर देखो ।

नेता(2) - क्या है यार उछल क्यों रहा है।

नेता(3) - अबे ! शराब की शबाब, तेरी हिरोइन....

नेता(2) - क्या हिरोइन ! अच्छा पगली....
नेता(1) - पगली नहीं । हिरोइन।जवान पगली.....

   (नीचे सोई हुई पगली के पास आ जाते है।)
नेता(1) - ए हिरोइन .......

   (पगली चौंक कर उठती है।)

नेता(2) - हिरोइन .... कैसी हो .... घबराओ मत ... कुछ नहीं होगा ... हिरोइन

नेता  - ए... ए

   (तीनों उसे घेरकर चक्कर लगाते है पगली घबराती हुई इधर-उधर देखती है    घेरा कम होता जाता है। तीनों उसे उठा मूर्ति के पीछे ले जाते है  बारह का घन्टा सुनाई पड़ता है टन...टन.....टन.. धीरे-धीरे मंच में प्रकाश आता है। मंच अस्त व्यस्त है।   मूर्ति थोड़ी टूट चुकी है। बोतल -गिलास गायब है। सुबह का समय बचरा,बचरी मंच पर आते है।

बचरा  - चल आज 15 अगस्त है। आज परसादी बटेगा।

बचरी  - हाँ, आज हमलोग भीख नहीं मागेंगे आज हमलोग यहां पर झण्डा-झण्डा खेलेंगे।

बचरा  - नहीं रे पगली ।झण्डा-झण्डा नहीं खलेंगे। बाबा कहते हैं आज देश आजाद हुआ था। आज हमलोग अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुये थे। आज हमलोग खुशी  मनायेंगे। बाबा कहते थे उसने आजादी की लड़़ाई लड़ी थी।

बचरी  - ये आजादी की लड़ाई क्या होती है।

बचरा  - बेवकुफ ! यह भी नहीं जानती है कि आजादी की लड़ाई क्या होती  देखो   आजादी की लड़ाई, आजादी की लड़ाई होती है।

बचरी  - अच्छा ! आजादी की लड़ाई, आजादी की लड़ाई होती है। पर ये कैसे लड़ी जाती  है।

बचरा  - हम क्या जाने आजादी की लड़ाई कैसे लड़ी जाती है। बाबा से क्यों नहीं पूछती.

बचरी  - हाँ ! मैं बाबा से पूछ लुंगी...   अरे देखो उधर पगली चाची सोई है.... चलो उससे पूछते हैं । आजादी की      लड़ाई कैसे लड़ी जाती है।

   (दोनों वहाँ जाते है, पगली अर्द्धनग्न अचेत पड़ी है।)

बचरी  - पगली चाची-चाची आजादी की लड़ाई कैसे लड़ी जाती है। पगली चाची क्या हुआ.....

बचरा   - पगली चाची, पगली चाची तुझे क्या हुआ । तुम्हारे कपड़े ये फट कैसे गये । क्या  हुआ पगली चाची बोलो ना क्या हुआ।

बचरी  - पगली चाची, तुम्हे किसी ने मारा क्या, बोलो पगली चाची किसने तुम्हे मारा।

बचरा  - बोलो पगली चाची। किसने तुम्हारे साथ ऐसा किया। हम अभी बाबा को बुलाते  है।बाबा.........बाबा.........देखो तो पगली चाची को क्या हुआ।

  (बाबा का प्रवेश एक बुढा व्यक्ति। उसके चेहरे से उसका व्यक्तित्व नजर आनी चाहिए)
बाबा  - क्या हुआ बच्चों

बचरा  -   बाबा ! देखो ना पगली चाची को क्या हो गया है।

बचरी  - किसी ने पगली चाची को पीटा है।

   (बाबा पगली को देखते हैं तथा बदहवास हो जाते हैं)

बाबा  - तुमलोग हटो बच्चो जाओ किसी को बुला लाओ और तेजी से निकलते हैं। तथा बाबा सजावट के लिए लगी झण्डी को खींचकर पगली के शरीर को ढकता है।

बाबा  - बोलो बेटी! किसने तुम्हारा ये हाल किया। कौन  है वह दरिन्दा जानवर। जिससे तुम पर रहम नही आया........बोलो बहन (इसी बीच एक-दो भिखमंगे जमा   होते है। बचरा - बचरी उसमे  शामिल है। एक भिखमंगनी दौड़कर कपड़ा लाकर  पगली का शरीर ढकती है। पगली अपने हांथो मे दबे टोपी या कुर्ता के टुकड़े  को इशारा कर दिखाती है। मानो कहना चाह रही हो , इसी ने उसके साथ   गलत कार्य किया हो। इशारा करते हुये पगली दम तोड़ देती है )

बाबा  - बोलो बेटी! बोलो। किसने यह दरिंदगी  दिखाई। (टुकड़ा देख) यह। यह तो  किसी  नेता के कपड़े का हिस्सा है। क्या तुम्हारे साथ किसी नेता ने..........
भिखमंगा(1) - बाबा कल से यहाँ कइ नेता आ रहे है। इस जगह झण्डा का उदघाट्न होना है।

बचरा - हां बाबा! कल तीन नेता लोग देर तक यहाँ बैठे थे। वे लोग ऐसा ही कपड़ा पहने थे।

बाबा  - क्या बेटी! उनलोगो ने......नही......ऐसा कैसे हो सकता है।.....क्या इसी के लिये देश को आजादी  मिली......क्या इसी दिन के लिये अंग्रेजो की लाठियाँ   खाई, जेल गये......क्या इसी दिन के लिये कुर्बानिया दी गई......नही........अब और नही.........अब और नही.........अब इंसाफ करना होगा........ आजादी की कीमत बतानी होगी।

भिखमंगा - बाबा........इस लाश का क्या करें।
बाबा - यह लाश यहीं रहेगी। मुख्यमंत्री से इसका हिसाब माँगा जायेगा।इस देश के हर गरीब - अबला मजदूर की रक्षा की  जिम्मेवारी उनके उपर है, क्यों......एक अबला की इज्जत लूटी गई.......अब   न्याय करना होगा, जब तक न्याय नही....होगा। लाश यहाँ से नही हटेगी..... हमलोग धरना देगें। सत्याग्रह करेगें। जाओ सबसे कह दो यहाँ आकर बैठ जाये।


                                                                       जारी.....कल पढ़े

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