गुरुवार, 26 जनवरी 2012

एकांकी नाटक

                      
  चौदह अगस्त की शाम से पंद्रह अगस्त की सुबह तक

परदा खुलते ही मंच पर पन्द्रह अगस्त की तैयारी करते कुछ युवक दिखाई पड़ते है। मंच की बांये तरफ एक चाय की दुकान है, जहाँ कुछ नेतारूपी युवा चाय पीते हुए ठहाका लगाते है। मंच के दाएँ तरफ झोपड़ीनुमा कुछ घर तथा बीच में गांधीजी की मिट्टी की बनी मूर्ति तथा सामने ही झंडा लगाने के लिए एक बांस पर एक तिरंगा झंडी लगाते हुए कुछ युवा। मंच के दाँए तरफ बचरी उदास बैठी है। बचरा का सिगरेट पीते हुए प्रवेश।
बचराः- क्या बात है बचरी। उदास क्यों बैठी हो ( बचरी चुप ) क्या भूख लगी है।(बचरी  हाँ में सर हिलाती है।)  अरे भूख लगी है, तो यहाँ क्यों बैठी हो, सामने देख....... होटल में कितनी भीड़ लगी है। जा बाबू लोग तो है, ही............ जा माँग ले।
बचरीः- मै वहाँ नही जाउगी।

बचराः- क्यों ......... वहां नही जाएगी तो क्या बाबू लोग खुद तुझे देने आयेंगे। अरे हमलोग
 भिखमंगे है, जा जाकर मांग। ज्यादा नखरे मत कर...
बचरीः- मै नही जाउगीं................. तुम सिगरेट पी रहे हो। बाबा को बोल देगें
बचराः- अरे नही बचरी । बाबा को मत बोलना। अरे यह तो सड़क में गिरा मिल गया था, इसलिए  उठा लिये। देख आज खूब कमाई हुई है, मै तो फिल्म भी देख आया।
बचरीः- कैसे !
बचराः- अरे आज कमाई के लिये सिनेमा हाल के पास चला गया था। वही एक्टींग की और पैसा कमाई की...... मन किया तो टिकट लेकर फिल्म भी देखी। खुब मजा   आया .......... तु कहां  गई थी, आज कुछ कमाई की नहीं।
बचरीः- नहीं !
बचराः- क्यों ?
बचरीः- देखा यहां भीड़  थी, सोचा कि आज यहीं भीख मांग लुंगी। बाबु लोग सुबह से ही यहां है।

बचराः- तब खुब  कमाई हुई होगी है ना.....

बचरीः- नहीं ।

बचराः- क्यों ! देख झूठ मत बोल । सच सच बोल.....
बचरीः- सच बोल रही  हूँ। तुम्हारी कसम...
बचराः- क्यों वहां नहीं गई थी क्या...

बचरीः- गई थी ।
बचराः- तो क्या बाबु लोग कुछ नहीं दिये । (बचरी चुप) तुझे मांगने नहीं आया होगा। इतनी  बड़ी हो गई हो लेकिन ठीक से  भीग मांगने भी नहीं सीखी। देख मैं मांग कर लाता हूँ।
  (बचरा होटल के पास चला जाता है । जहां नेतानुमा लोग खड़े है।)

बचराः-  बाबु जी, भुख लगी है । कुछ मिल जाए ।
नेतानुमा(1) :- अबे चल । आगे बढ़

बचराः- बहुत भुखा हूँ साब । कुछ दे दिजिए।

नेतानुमा(2):- अबे साला । तेरा बाप-माँ नहीं है क्या। साले पैदा कर छोड़ दिया है। चल भाग
बचराः- मैं बहुत भुखा हूँ...............
नेतानुमा(3):- अबे काम करेगा  (बचरा सर हिलाता)

नेतानुमा(3):-क्या काम करेगा । बोल क्या काम करेगा।

बचराः- साब कुछ भी......... पेट भरने लायक कुछ भी काम मिल जाये।

नेतानुमा(1):- कुछ पढ़ा लिखा भी है या खाली ऐसा ही है रे।

बचराः- नही साब पढाई - लिखाई हमारे नसीब में कहाँ साब। गरीब आदमी हूँ । दो    दिन से भूखा हूँ साब कुछ दो ना।
नेतानुमा(3)- क्यों रे ( होटलवाले को ) इसको रखेगा अपने यहाँ काम करने के लिए। प्लेट- व्लेट साफ कर देगा।
होटलवालाः- नही साब। हमारी औकात नही है साब। अपनी पेट तो भरती नही है, और  इसको क्या खिलाएगें।
नेतानुमा(2)- हाँ साला इंकमटैक्स बचाने के लिए झूठ बोलता है। क्यों रे इंकमटैक्स देता है।
होटलवालाः- बाबूजी हमलोग गरीब आदमी है, इंकमटैक्स कहाँ से देंगे।
नेता(1) -साला, गरीब तो इस दुनिया में सब है.............. सरकारी जमीन पर दुकान, खोल कर   बैठा है। कमा-कमाकर मोटा हो रहा है, और बोलता है इंकमटैक्स नही देता।

नेता(2) -साला..... हप्ता देता होगा । क्या रे दुकान का किराया देता है या नहीं  (होटलवाला चुप रहता है)  क्या रे बोलता क्यों नहीं । ऐसे ही दुकान चला रहा है क्या ।

होटलवालाः-नहीं साब! थाना वाले ले जाते है।
       
नेता(3) -कितना देते हो।

होटलवालाः- छोडि़ए साब.... अब क्या बोले आपलोग से कुछ थोडे ही छुपा  है।
नेता(3) -बोल-बोल । घबरा मत , कुछ नहीं होगा। कौन ले जाता है।

नेता(1) -आजकल साला गरीब लोग का जीना मुश्किल हो गया है। देखो साला थाना वाला ठेला वाला से भी पैसा लेता है।(इसीबीच एक पुलिस वाले का प्रवेश। होटलवाला से   पैसा लेता है और एक समोसा उठा कर खाने लगता है।)

                                                                                     
                                                                                                                             ज़ारी........ कल पढ़े

2 टिप्‍पणियां: