शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

रंगमंच


क्या रंगमंच सिनेमा के गलियारे की पहली सीढ़ी है यह प्रश्न कुछेक दशक पुर्व तक रंगकर्मियों के बीच चर्चा का विषय रहा और वास्तु स्तिथि ये थी की रंगमंच का इस्तेमाल सिनेमा की ख्वाहिस को पूरा करने का जरिया बन चूका था ज्यादातर लोग जो रंगमंच खास कर हिंदी रंगमंच से जुड़ रहे थे उनमे रंगमंच के प्रति ठहराव नहीं था ये सभी रंगकर्मियों पर लागु नहीं होता परन्तु ज्यादातर संख्या ऐसे ही की रही है, यही कारण रहा की रंगमंच पर लोग आते गए अपनी कुछेक उपस्तिथि नाटकों के माध्यम दर्ज करते रहे परन्तु रंगमंच को एक उच्चाई पर नहीं ले जा सके रंगमंच,नाटक उनके रुपहले परदे पर पहुचने का सपना बन बिखरता गया ऐसे कई रंगकर्मी रुपहले परदे पर तो नहीं आ सके परन्तु उनका रुपहले परदे पर पहुँचने का संघर्ष, ठोकरें रंगमंच को नुकसान पहुचाती रही आज भी रंगमंच पर ये चर्चा का विषय है परन्तु मेरा मानना है की कुछेक समय पूर्व रंगमंच सिनेमा तक पहुँच का जरिया हुआ करता होगा परन्तु आज के संदर्भ में यह बात गलत साबित होती है खास कर जबसे चैनलों में सीरियलों का आगमन हुआ है क्योंकि सीरियलों में अभिनय कही दिखाई नहीं देता दिखाई देता है तो सिर्फ चिकने चुपड़े चेहरे बड़े भव्य सेट दृश्यों के कई एंगल से लिए गये दृश्यों की पुनरावृति, तेज़ म्यूजिक जो आपका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेती है किसी भी सीरियल से आपके अंदर के कलाकार के अभिनय का भूख ख़त्म नहीं हो सकता बल्कि वह आपके अभिनय का स्तर ही ख़त्म कर सकता है. रंगमंच वास्तव में आपका बौद्धिक विकाश करता है जिस हम चर्चा फिर कभी करेंगे मेरा ऐसे लोगों से अनुरोध होगा जो रंगमंच को सीढ़ी की तरह उपयोग करना चाहते, मत करें क्योंकि रंगमंच सिर्फ रंगमंच है ये आपका व्यक्तित्व विकास कर सकता है रंगमंच का उपयोग सिर्फ और सिर्फ रंगमंच के लिए करे .

2 टिप्‍पणियां:

  1. भाई.....एक स्तर पर तक तो आपकी बात बिलकुल सही है....मगर अंततः तो हर कलाकार उस भव्यता को प्राप्त करना चाहता है...इसी का परिणाम है यह सब....अब किसी भी चीज़ में उस कमिटमेंट को नहीं खोजा जा सकता...जो वर्षों पूर्व हम पाते थे....समय के साथ.....चीज़ें बदल ही जाती हैं....और बेशक हम उन्हें ढूढने की कोशिश करते रहे.......वैसे आपका इशारा तो सही दिशा में ही है....और उसका प्रतिपादन मैं भी करता हूँ....मगर शायद हम कुछ कर भी तो नहीं सकते.....!!

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