शुक्रवार, 27 मार्च 2009

रंगकर्म और रंगकर्मी


एक प्रेक्षागृह के अन्दर एकदम अँधेरा ...उस अँधेरे में धीरे-धीरे एक वृत्त दायरे में आता प्रकाश ....उस प्रकाश के साथ कानों में सुने देती कुछ संवाद और साथ ही दिखाई पड़ता एक जीवंत अभिनय...एक रंगकर्मी जो मंच पर किसी पात्र को जी रहा है ..वह रंगकर्मी उस पात्र को जीवित कर देता है आपकी आँखे बस उस दृश्य की ओर ठहर जाती है और आप उस रंगकर्मी के साथ उस नाटक के एक पात्र हो जाते है ...आप महसूस करते है की प्रेक्षागृह में दिखाया जाने वाला नाटक वास्तव में नाटक नहीं आपकी ही जिंदगी का एक हिस्सा है ..आपकी रोजमर्रा के किर्या-कलापों का एक हिस्सा ..जिसमे आप कभी हँसते है कभी नीरस होते है तो कभी गुस्से में झुंझला जाते है ..कभी आप जिंदगी से हार मन जाते है तो कभी जिंदगी को आप एक नई दिशा देते है ..एक रंगकर्मी ..रंगकर्म करते हुए क्या सोचता है ..एक रंगकर्मी के परिवार के लोग उसके पीछे क्या सोचते हैं .. विपरीत परिस्तिथियों में लड़ता रंगकर्मी खुद आपनी ही लडाई किस प्रकार लड़ता है ...क्या एक रंगकर्मी की राह उसके मंजिल तक की सफ़र होती है या फिर रंगकर्मी किसी चौराहे पर खडा हो आपनी ही राह भटक जाता है.... ये कई प्रश्न हैं .. जिन प्रश्नों से आपका कोई नाता नहीं है पर रंगकर्मियों के बीच ये उनकी मर्यादा और अस्तित्व की बात है या फिर कहे की ये एक लडाई है जिसमे जीत भी रंगकर्मी की होती है हार भी रंगकर्मी की ही होती है ..रंगकर्म गाँवों से लेकर महानगरों तक सभी ज़गह होती है हर कोई आपनी वजूद की लडाई अपने स्तर से लड़ता है ...अगर मैं सही कहूँ तो रंगकर्म एक विचार है ,रंगकर्म एक जुनून है इस संसार में ज़न्म लिया हुआ प्रत्येक व्यक्ति रंगकर्मी है जो अपनी इच्छा व्यक्त करता है उसकी प्रतिक्रया व्यक्त करता है ..हम सभी संसार रूपी रंगमंच के एक पात्र है जो आपनी भूमिका खुद निभाते है ...ये ब्लॉग साझा है इसमें शामिल हो....रंगकर्म जो आपके क्षेत्र में हो रहा हो .. आपके शहर का रंगकर्मी नाट्य- निर्देशक, लेखक सभी की जानकारी दे...... रंगमंच पर अपने विचार दे ..लिखे.....मिले ..इसे पढ़े ..अपने विचार दे ........ विश्व रंगमंच दिवस एवं वर्ष प्रतिपदा पर आप सभी को शुभकामनायें!

2 टिप्‍पणियां:

  1. aapka aalekh sachmuch bada hi acchha ban padaa hai.........rangmanch ke aage badhne ke liye aapko hamaari shubhkaamnaayen.....!!

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  2. जिसे समझाने के लिये SHOWMAN राज कपूर ने पूरी 3:5 घन्टे की फिल्म बनाई, उसे आपने अपने एक अनुच्छेद के आलेख मे
    समेट दिया। इसे कहते हैं गागर मे सागर भरना।
    क्या विडंबना है- "उपर ही उपर पी जाते हैं जो पीने वाले हैं।
    ऐसे ही जीते हैं जो जीने वाले हैं।"

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