रविवार, 24 मई 2009

बाल नाटक

बाल नाटकों की कमी अक्सर हिंदी नाट्य जगत में देखने को मिलती है और कई बार ऐसा महसूस होता है की हिंदी में बाल नाटको को लिखने के प्रति नाट्यकारों ने ध्यान कम दिया है वैसे विनोद रस्तोगी एवं अन्य नाट्यकारों के द्वारा कई बाल नाटक लिखे गए है परन्तु आज वक़्त बालमन को नाटकों से जोड़ वर्तमान प्रस्तिथियों की नवीनतम जानकारी देने का भी है यदि हम बालमन को कुछ अलग-अलग उनके उम्र के बदती जिज्ञासाओं के अनुसार बाँट कर उनके अनुसार नाटकों को लिखें या फिर नाट्य-कार्यशाला के द्वारा नाटकों का उन्ही बालमन के साथ खेल-खेल में लिख डाले और उनका नाट्य मंचन करें तो नाटक बालमन के अनुरूप होने के साथ-साथ नाटक की गहराई को महसूस करता है इस प्रकार के नाटकों के निर्माण में दो तरह के फायदे नज़र आते है एक तो बाल नाटक मंचन होते है साथ ही रंगमंच की नई पौध तैयार होती है जो भविष्य के रंगकर्मी होंगे मेरा मानना है की रंगमंच सिर्फ नाटकों के मंचन का ही नाम नहीं बल्कि व्यक्तित्व के निर्माण का नाम है जो अघोषित रूप से नाट्य मंचन के पूर्वाभ्यास के दौरान कलाकार खुद बा खुद ग्रहण करता रहता है बाल नाटकों के कार्यशाला या फिर यूँ कहें की नाटकों को लेकर हुए कार्यशाला में तैयार तो अच्छे नाटक होते है परन्तु उन नाटकों के पुनर्मंचन नहीं होने के कारण उनका प्रसार नहीं हो पता जिसके कारण कई अच्छे नाटकों का, अच्छी स्क्रिप्ट का अकाल मृत्यु हो जाता है या फिर हम इस प्रकार कह सकते है की उन नाटकों को तैयार करने में लगी एनर्जी चन्द वाह-वाही के बाद ख़त्म हो जाती है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी इस एनर्जी को बाँटने के लिए सबसे ज्यादा ज़रूरी तैयार नाटक के स्क्रिप्ट को किसी भी तरह छपाया जाए उसका ज्यादा से ज्यादा प्रति नाट्य प्रेमियों के बीच वितरित कर नाट्य आन्दोलन को आगे बढाना चाहिए स्क्रिप्ट बैंक का निर्माण कर रंगकर्मियों को आपस में जुड़ना चाहिए ताकि नाटक,रंगमंच का विकास `हो

2 टिप्‍पणियां:

  1. bahut sundar jaankaaree dee aapne hameshaa kee tarah aaj kal ye sab durlabh ho gaya hai.....

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  2. ना सिर्फ बाल रंगमंच में,अपितु समूचे रंगमंच में ही इस सबका अभाव है....बेहतर जानकार लोग भी इसे किन्हीं ना किन्हीं परेशानियों के कारण छोड़ जा रहें हैं...क्योंकि रंगमंच आज तक एक कैरियर का रूप नहीं ग्रहण कर पाया है....जो समस्या रंमंच के साथ है...वो ही इसकी इस शाखा के साथ होनी ठहरी....अब देखिये कि शायद आगे इस और सद्प्रयास किये जाएँ....किन्तु इस सन्दर्भ में कुछ भी कहने से बेहतर है....खुद ही कुछ कर डालना....जबकि लिखने वाला इस विषय में खासा पारंगत हो.....क्यूँ ठीक कहा ना मैंने....??

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