रविवार, 22 नवंबर 2015

अवांछित का मंचन

मंच पर अँधेरा है पर्दा खुलते हीनाटक "अवांछित" का आरम्भ  पागलखाने के एक कमरे का दृध्य से होता है जहां  युवक (समीर सौरभ ) चीखते हुए नज़र आता है और पागलखाने के स्टाफ उसे पकड़ते है तब डाक्टर (राकेश साहू )आकर युवक को छोड़ने के लिए कहता है फिर डाक्टर युवक से बाते  करता उसके अतीत को झांकता है जिसमे युवक को प्यार करने वाली माँ (सृष्टि दयाल )  का ममता दिखाई पड़ता है वहीँ युवक के नेता पिता (सनी शर्मा) की क्रूरता दिखाई पड़ती है जो अपने क्षेत्र को सूखाग्रस्त घोषित कराकर मुनाफा कमाना चाहता है जिसका विरोध करने पर अपने बेटे यानि युवक को ही पागल घोषित कर पागलखाना भिजवा दिया जाता है ताकि नेता के काले कारनामे छुपे रहे।  
नाटक का मंचन युवा नाट्य संगीत अकादमी ,रांची के द्वारा प्रत्येक रविवार नाटक कार्यक्रम के अंतर्गत कांति कृष्ण कला भवन में की गई थी। 



सोमवार, 16 नवंबर 2015

कला संस्कृति के प्रचार प्रयास



झारखण्ड सरकार इन दिनों कला संस्कृति के प्रचार प्रयास में काफी ध्यान दे रही है जिसका प्रत्यक्ष उदहारण ' शनि परब ' के नाम से आरम्भ प्रत्येक शनिवार को सांस्कृतिक कार्यकर्मों को सरकारी स्तर  पर करना है इससे भी चार कदम आगे झारखण्ड सरकार के द्वारा अपने १६ह्वे स्थापना दिवस में राज्य स्तर पर नाटक, नृत्य, आदि का अतियोगिता करा कर इनको राज्य स्तर पर बढ़ावा देने के लिए प्रत्येक जिला में प्रतियोगिता किया गया उसमे प्रथम आये नाटक नृत्य को प्रोत्साहित राशि दी गई।
ये अच्छी शुरुवात है जिससे कलाकार प्रोत्साहित होंगे

बुधवार, 11 नवंबर 2015

अभिव्यक्ति की आज़ादी और शोषण होते आम जन की झलकियाँ

 ८ नवम्बर२०१५ वह ऐतिहासिक दिन जब बिहार की राजधानी पटना में चुनाव परिणाम के आने की तपिश से पूरा देश प्रभावित हो रहा था तो पटना रंगमंच के रंगकर्मी अपनी सहजता और कुशलता के साथ झारखण्ड की राजधानी रांची में अपने जलवे बिखेर रही थी। 
झारखण्ड की राजधानी रांची जो कभी एशिया का सबसे बड़ा पागलखाना के रूप से भी जाना जाता था जिसके कुछ पागल रंगकर्मीं आज भी नाटकों के अलख को जगाने के लये प्रत्येक रविवार नाटक कार्यक्रम करते है जो पूर्णत; निशुल्क और बिना किसी सरकारी सहयोग के होता आ रहा है , ५  अप्रैल२०१५ से आरम्भ हुए इस कार्यक्रम में ढेरो नाटकोंके मंचन हो चूका है इसी कड़ी में पटना के कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति हे मातृभूमि नाटक का मंचन कान्तिकृष्ण कला भवन , गोरख नाथ लेन ,अपर बाजार रांची में किया.  
  अभिव्यक्ति की आज़ादी और शोषण होते आम जन, नाटक "हे  मातृभूमि" इनके इर्द गिर्द सिर्फ घूमता ही नहीं बल्कि वर्तमान व्यवस्था


की झलकियाँ भी दिखता गया।
नाटक में निर्देशक ने जो दिखाना चाहा और उनकी सभी चाह  को रांची के दर्शकों ने अपने अंदर आत्मसात किया।
नाटक का आरम्भ किसी ऐसे प्रेक्षागृह से होती है जहां चंद्राकार जो एक पत्रकार और रंगकर्मी है जिसके नाटक का मंचन होने वाला है परन्तु चंद्राकर समय से नहीं पहुँचता ना ही कोई सुचना है तभी पता चलता है की चंद्राकर की गोली मार हत्या कर दी गई है , ये वही चंद्राकर है जिसकी खोजी पत्रकारिता और कर्मठता ऐसे सफेदपोशो के लिए सरदर्द है जो देश दुश्मन है पर समाज में उनकी प्रतिष्ठा है , यूरेनियम की चोरी छिपे कारोबार करने वालो का पर्दाफाश चंद्राकर करता है जिसे रुपयों की लालच दे मामला को दबाने के लिए कारोबारी चंद्राकर को खरीदना चाहते है परन्तु चंद्राकर बिकता नहीं तो उसकी हत्या कर दी जाती है।
नाटक में निर्देशक सनत कुमार ने कई निर्देशकीय प्रयोग किये जो नाटक की गति को स्पीड बढ़ाते रहे और नाटक के अंत में कलाकारों को श्रदांजलि के साथ अपने कर्मठता का अहसास करा गए।
नाटक का मंचन रंगसृष्टि ,पटना के द्वारा की गई जिसमें अभिनय किया सनत कुमार ,धीरज कुमार, नंदन कुमार, अरुण कुमार , रवि कुमार , अभिषेक कुमार ने तथा प्रकाश एव मंच व्यवस्था थी रवि कुमार एव राज कपूर की     

बुधवार, 4 नवंबर 2015

 कान्ति कृष्ण कलाभवन रांची में ८ नवम्बर २०१५ दिन रविवार को संध्या ६. बजे पटना की नाट्य संस्था रंगसृष्टि का नाटक हे मातृभूमि का मंचन होगा जिस्कर निर्देशक सनत कुमार है 

सोमवार, 2 नवंबर 2015

कफ़न का मंचन

रांची शहर के नाट्य प्रेक्षागृह " कान्ति कृष्ण कला भवन "गोरखनाथ लेन में प्रत्येक रविवार नाटक कार्यक्रम के अंतर्गत शहर की प्रसिद्द नाट्य संस्था देशप्रिय क्लब  के द्वारा प्रेमचंद की कहानी कफ़न का नाट्य रूपांतरण का मंचन किया गया। 
कहानी का रूपांतरण भगवन चन्द्र घोष के द्वारा किया गया था एव नाटक के निर्देशक थे सुकुमार मुखर्जी। 
 नाटक की कहानी माधव एव घीसू के इर्द गिर्द घूमती है ये दोनों आलसी प्रबृति के है जो कामचोर है तथा भूख मिटने के लिए किसी के खेत से आलू उखाड़ लेट और खाते पर काम नहीं करते बुधिया जो माधव की विवाहिता है और पुरे गर्भ से है कभी भी बच्चे का जन्म हो सकता है जो रात में प्रसव वेदना से कराह रही है और दर्द से छटपटा  रही है जिसकी मदद करने के जगह दोनों आराम करते है जिससे बुधिया प्राण त्याग देती है जिसके क्रिया कर्म के लिए जमींदार के पास जाकर दोनों रो धोकर पैसे मांगते है दया कर जमींदार उन्हें पैसा दे देता है जिससे कफ़न खरीदने दोनों बाजार जाते है परन्तु बाजार की चकाचौंध में वे कफ़न खरीदना भूल जाते है और दारू पी मस्ती करते है साथ ही घर लौटते वक़्त कफ़न नहीं ख़रीदने का बहाना सोच लेते है साथ ही उनका अनुभव की गांव वाले खुद बुधिया का क्रिया कर्म कर देंगे सटीक बैठता है ,
नाटक में अभिनय मीर युनुस उर्फ़ राजू बनवारी , अमित कुमार,फज़ल इमाम ,कैलाश मानव एव एस. मृदुला ने किया प्रस्तुति सहयोग युवा नाट्य संगीत अकादमी की थी 
नाट्य मंचन के वक़्त शहर के वरिष्ठ रंगकर्मियों के अलावा  झारखण्ड विधान सभा के डिप्टी डायरेकर मिथिलेश झा भी उपस्तिथ थे 
युवा नाट्य संगीत अकादमी की तरफ से झारखण्ड विधान सभा के डिप्टी डायरेकर मिथिलेश झा को सम्मानित करते डॉ कमल कुमार बोस 


 माधव और घीसु की भूमिका में फज़ल इमाम और अमित दास
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रविवार, 1 नवंबर 2015

वसुंधरा आर्ट्स , रांची की नाट्य प्रस्तुति

 
रांची रंगमंच की जानी मानी  नाट्य  संस्था वसुंधरा आर्ट्स की नाट्य प्रस्तुति "नाटक नहीं" का मंचन ३१ अक्टूबर २०१५ को डॉ रामदयाल मुंडा कला भवन रांची  प्रेक्षागृह में प्रतुत की गई।  व्यवस्था पर चोट पहुंचती नाटक नहीं  अपने सन्वादों के ज़रिये  समाज में व्याप्त  बुराइयों     का उजागर करती है।