मंगलवार, 31 मार्च 2009

महोत्सव के तीसरे दिन

जमशेदपुर थियेटर एसोसिएसन, जमशेदपुर के नाट्य महोत्सव के तीसरे दिन नाट्य संस्था 'निशान' की प्रस्तुति देवाशीष मजुमदार रचित नाटक "ताम्रपत्र" का मंचन श्याम कुमार के निर्देशन में हुआ. ताम्रपत्र एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो गरीबी से तंग आकर वो बेटे को नौकरी लग जाये की लालच वो बहकावे में आकर छद्म स्वतंत्रता सेनानी बन ताम्रपत्र हासिल कर लेता है और खुद को स्वतंत्रता सेनानी ही समझता है उसके अनुरूप उसकी सोच होती है वैसा ही काम करता है परन्तु अपने नकली स्वतंत्रता सेनानी होने बोझ सहन नहीं कर पता है उसकी अंतरात्मा उसे कचोटती है और अंत में अपनी आत्मा की आवाज़ पे वह ताम्रपत्र लौटा देता है. नाटक के मुख्य भूमिका में श्याम कुमार, दर्शाना, ज्योत्स्ना सिंह, बबन शुक्ल, राजेश कुमार थे. महोत्सव की तीसरी संध्या की दूसरी एवं अंतिम प्रस्तुति मुन्सी प्रेमचंद की अमर कहानी कफ़न का बंगला नाट्य रूपांतर चन्दन चन्द्र के निर्देशन में 'रिभव' के द्वारा किया गया. भूख और उससे होनी वाली त्रासदी, रिश्तो से ऊपर भूख की महाछाया और उसका निवारण के लिए मनुष्य का सामाजिक दायित्व का लुप्त होना इसका काफी अच्छा नाट्य प्रदर्शन 'रिभव' के कलाकारों के द्वारा किया गया. घीसू की भूमिका चन्दन चन्द्र, बेटा की भूमिका में प्रवीर चटर्जी एवं ग्रामवासी अमित कुमार दास थे.

शुक्रवार, 27 मार्च 2009

जमशेदपुर में नाट्योंत्सव

विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर 'जमशेदपुर थियेटर एशोसियेसन,जमशेदपुर ' के द्वारा नाट्योंत्सव का आयोजन 27,28,29 मार्च को किया जा रहा है जिसके प्रथम दिवस नाट्य संस्था 'पथ' की प्रस्तुति विजय तेंदुलकर लिखित एवं मो० निजाम निर्देशित 'कन्यादान' का मंचन किया जायेगा। 28 मार्च को दक्षिण भारतीय महिला समाज के द्वारा नाटक 'अमावस्या आई।ए।एस।' एवं 29 मार्च को नाटक नाट्य संस्था 'निशान' के द्वारा देवाशीष मजुमदार लिखित एवं श्याम कुमार द्वारा निर्देशित 'ताम्रपत्र' तथा नाट्य संस्था 'कला' की प्रस्तुति प्रेमचंद की कहानी 'कफ़न' का मंचन बंगला भाषा में चन्दन चन्द्र के निर्देशन में किया जायेगा
महोत्सव में २७ मार्च को विजय तेंदुलकर रचित मराठी नाटक 'कन्यादान' का हिंदी रूपांतर मो० निजाम के निर्देशन में मिलानी हॉल, जमशेदपुर में किया गया ,नाटक की कथावस्तु मनुष्य का मनुष्य पर खुद को श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश एवं उच्च वर्ग तथा निम्न वर्ग की कहानी है, जिसका सफलता पूर्वक मंचन नाट्य संस्था 'पथ' के कलाकारों अभिषेक कुमार, नुरुल अमिन, एन. राय के द्वारा किया गया. इसी दिन बंगला नाटक 'आहा रे मोरंग' का मंचन वाई. के. इ.सुरेश के निर्देशन में किया गया. नाटक की कहानी काफी इंट्रेस्टिंग है अपनी प्रेमिका को चाहने और उसे पाने की लालच में बेटा अपने पिता को मरना चाहता है क्योंकि पिता के नाम इन्सुरेंस है जिसके मरने पर पैसो का भुगतान बेटा को होगा अंत में पिता परेशान होकर आत्महत्या कर लेता है .... 28 मार्च को दक्षिण भारतीय महिला समाज, जमशेदपुर की प्रस्तुति अमावस्या आई. ई.एस.रही जिसके लेखक एवं निर्देशक लक्ष्मी वरदराजन थी नाटक महिला शिक्षा,सामाजिक पर आधारित था नाटक में मुख्य किरदारों में एम्. सी. एस. शिवा, गौरी शिवा, दर्शाना,आनंद,स्विश, ए. आर. गोपाल, आर.जयंती, बालाकृष्णन, रामचंद्रन, प्रिय नागराजन, लावण्या..... आदि थे नाटक की प्रस्तुति सराहनीय रही.

रंगकर्म और रंगकर्मी


एक प्रेक्षागृह के अन्दर एकदम अँधेरा ...उस अँधेरे में धीरे-धीरे एक वृत्त दायरे में आता प्रकाश ....उस प्रकाश के साथ कानों में सुने देती कुछ संवाद और साथ ही दिखाई पड़ता एक जीवंत अभिनय...एक रंगकर्मी जो मंच पर किसी पात्र को जी रहा है ..वह रंगकर्मी उस पात्र को जीवित कर देता है आपकी आँखे बस उस दृश्य की ओर ठहर जाती है और आप उस रंगकर्मी के साथ उस नाटक के एक पात्र हो जाते है ...आप महसूस करते है की प्रेक्षागृह में दिखाया जाने वाला नाटक वास्तव में नाटक नहीं आपकी ही जिंदगी का एक हिस्सा है ..आपकी रोजमर्रा के किर्या-कलापों का एक हिस्सा ..जिसमे आप कभी हँसते है कभी नीरस होते है तो कभी गुस्से में झुंझला जाते है ..कभी आप जिंदगी से हार मन जाते है तो कभी जिंदगी को आप एक नई दिशा देते है ..एक रंगकर्मी ..रंगकर्म करते हुए क्या सोचता है ..एक रंगकर्मी के परिवार के लोग उसके पीछे क्या सोचते हैं .. विपरीत परिस्तिथियों में लड़ता रंगकर्मी खुद आपनी ही लडाई किस प्रकार लड़ता है ...क्या एक रंगकर्मी की राह उसके मंजिल तक की सफ़र होती है या फिर रंगकर्मी किसी चौराहे पर खडा हो आपनी ही राह भटक जाता है.... ये कई प्रश्न हैं .. जिन प्रश्नों से आपका कोई नाता नहीं है पर रंगकर्मियों के बीच ये उनकी मर्यादा और अस्तित्व की बात है या फिर कहे की ये एक लडाई है जिसमे जीत भी रंगकर्मी की होती है हार भी रंगकर्मी की ही होती है ..रंगकर्म गाँवों से लेकर महानगरों तक सभी ज़गह होती है हर कोई आपनी वजूद की लडाई अपने स्तर से लड़ता है ...अगर मैं सही कहूँ तो रंगकर्म एक विचार है ,रंगकर्म एक जुनून है इस संसार में ज़न्म लिया हुआ प्रत्येक व्यक्ति रंगकर्मी है जो अपनी इच्छा व्यक्त करता है उसकी प्रतिक्रया व्यक्त करता है ..हम सभी संसार रूपी रंगमंच के एक पात्र है जो आपनी भूमिका खुद निभाते है ...ये ब्लॉग साझा है इसमें शामिल हो....रंगकर्म जो आपके क्षेत्र में हो रहा हो .. आपके शहर का रंगकर्मी नाट्य- निर्देशक, लेखक सभी की जानकारी दे...... रंगमंच पर अपने विचार दे ..लिखे.....मिले ..इसे पढ़े ..अपने विचार दे ........ विश्व रंगमंच दिवस एवं वर्ष प्रतिपदा पर आप सभी को शुभकामनायें!